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तूफान की तबाही मानसून स्पेशल प्रतियोगिता हेतु रचना भाग 07 लेखनी कहानी -10-Jul-2022

                   आज  रविवार है आज रमन की मम्मी को शादी की कुछ बातैं करने आना है। सविता को चिन्ता भी बहुत हो रही थी। क्योकि सविता को यह भय सता रहा था कि मालूम नही वह कुछ ऐसी मांग न कर बैठे जिसे उसे पूरा करने में परेशानी हो।


      सविता उनके खाने की ब्यबस्था भी कर रही थी परन्तु मन में दहेज माँगने का भय सता रहा था।

   जब रुदाली ने अपनी मम्मी को अधिक परेशान देखा तो वह उनको समझाते हुए बोली," मम्मा आप बेकार में इतनी टैन्शन ले रही हो  आप मुझे तो समझाती हो कि यह सब ईश्वर के हाथ में होता है हम कुछ नही कर सकते है और आप स्वयं इतनी चिन्ता कर रही हो। जब हमने पहले ही सोच लिया है यदि वह कुछ ज्यादा मांग करैगी तब हम बात को आगे नहीं बढा़येगे। यही समाप्त कर दैगे। अब आप चिन्ता करना छोडो़ और नार्मल हो जाओ।

      सविता बोली," मै कोई चिन्ता नही कर रही हूँ मैने तो पहले ही ऊपर वाले पर छोड़ दिया है वह जो करेगा ठीक ही करेगा। उसे जो भी करना है वही करेगा। हम इसमे कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते है।

        सविता उनके आने की प्रतीक्षा करने लगी।  कुछ समय बाद वह अकेली ही वहाँ पर आगयी रमन साथ नहीं आया था। वह अकेली ही आई थी।

      सविता ने उनको आदर से बिठाया और चाय नाश्ता करवाया। इसके बाद रमन का माँ मन्जू उनको अपने पास बिठाकर बोली ," देखो बहिनजी अब हम दोनौ एक दूसरे के रिश्ते दार है। और इस रिश्तौ को ईमानदारी से निभाना हम दोनौ परिवार का फर्ज है। मै आपके दुःख को समझती हूँ कि आजतक भाईसाहब की कोई खबर नही है।

       सविता उनकी बातौ को सुन रही थी लेकिन उसका मन चिन्तित था कि यह मालूम नहीं क्या बात करने आई है। उसका दिल यह सोचकर ही चिन्तित था कि मालूम नही क्या होगा। मै उनकी सभी माँगै पूरी कर सकूगी अथवा नही।

    मंजू बोली," देखो बहिन जी हमें कर्जे वाली लक्ष्मी नही चाहिए जो अपने सिर पर माँ बाप पर कर्जा छोड़कर आये। इस लिए आप पर जो हो वही देना किसी से एक भी रुपिया  उधार नही लेना है। जो भी कमी हो चुपचाप मुझे बता देना। अब हम दोनौ रिश्तेदार है एक दूसरे के सुख व दुःख  को हमें समझना होगा। अब आपका दुःख भी हमारा ही दुःख है।

        इस लिए आपको कोई भी परेशानी आये मुझे बताना। रमन अब मेरा ही नही आपका भी बेटा है। मै जानती हूँ कि अकेली औरत को कितनी परेशानी आती है क्यौकि मै इससे गुजर चुकी हूँ। उस समय कोई भी साथ नही देता। सभी को  अकेली औरत को नौचकर खाने की पड़ती है। अब आपका दुःख परेशानी हमारा ही दुःख है। इतना कहकर उन्हौने  सविता को अपने गले से लगा लिया।

     सविता की आँखौ से अविरल आँसुऔ की धारा बह रही थी।  सविता बोली," बहिन जी आपने इतना कहकर  मेरा सारा बोझ हल्का कर दिया। जिसको इस तरह के रिश्तेदार मिल जाय तो उसका यह बहुत बडाँ भाग्य है मै तो यही कहूँगी। अब रुदाली आपकी है आप जिस तरह चाहो लेजाओ  मै आपकी राजी में ही अपनी राजी रखूँगी।

     आज सविता की सभी चिन्ता दूर होगयी थी। मंजू इतना कहकर उनको सहायता का पूरा आश्वासन देकर अपने घर बापिस लौट गयी।

      उधर आनन्द को अस्पताल से बहुत समय पहले ही  छोड़ दिया गया था। वह वहा से मथुरा आकर यमुना किनारे स्थित एक आश्रम मे रहने लगा था। वह वहाँ आश्रम के गुरू की सेवा करता था। उसकी पिछली याददास्त कुछ नही थी।

     वह आश्रम मे उन गुरू की सेवा में ब्यस्त रहता था। वह आश्रम की सफाई करता और गोपाल की सेवा मे लगा रहता था। उसे इस दुनियादारी से कोई मतलब नही था।

      जब आनन्द पहली बार उस आश्रम में आया था तब गुरूजी ने उसका पता ठिकाना पूछा था परन्तु वह कुछ भी नही बता सका था केवल अपनी बाजू पर लिखे हुआ नाम ही उसकी पहचान था। इसी लिए उसे सब आनन्द के नाम से पुकारते थे।

      आश्रम के गुरूजी ने आस पास के लोगौ से उसके बिषय में जानकारी करवायी कि किसी का कोई आदमी तो गायब नही हुआ जिसका नाम आनन्द हो। परन्तु किसीने भी कुछ नही बताया। तब से लेकर वह चस आश्रम में ही रह रहा था।

       उसकी सेवा से गुरूजी भी बहुत खुश थे।   


                    क्रमशः आगे की कहानी अगलै भाग में।

मानसून स्पेशल प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा " पचौरी "

27/07/२०२२


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11 Comments

Abhinav ji

31-Jul-2022 09:18 AM

Very nice

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Gunjan Kamal

30-Jul-2022 12:53 PM

बहुत ही शानदार भाग

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Mithi . S

29-Jul-2022 11:51 PM

Nice 👍

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